सहज साहित्य (Sahaj Sahitya)
साहित्य में सहजता ही उसकी उन्नति की आधारशिला है।
Sunday, 17 August 2025
मन से कटुता दूर हटाएँ - एक गीत
Sunday, 10 August 2025
वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक
Sunday, 3 August 2025
कहीं धसकते शैल-शिखर हैं, कहीं डूबते कूल-कछार - एक गीत



Sunday, 27 July 2025
बारिश में - एक ग़ज़ल
आज रोया जो सुबह उठ के
शहर बारिश में
याद आया है टपकता हुआ
घर बारिश में
जोर से बरसी घटा झूम
उठा गाँव मेरा
डर के छत पर है चढ़ा
तेरा नगर बारिश में
खेत खलिहान तलैया हैं
खड़े सज धज के
नालियाँ घर में घुसी बन
के नहर बारिश में
मोर नाचे हैं मुंडेरों
पे जो गरजे बादल
भूख करती है सड़क रोक
सफ़र बारिश में
भीग कर हमने लिया खूब
ठिठुरने का मजा
बेवजह तुमको है बीमारी
का डर बारिश में
रूप निरखे हैं तलाबों
में निखर के कुदरत
तू ने देखी है तबाही की
खबर बारिश में
बाढ़ से सच में बहुत
ज्यादा है नुकसान इधर
लाभ लेकर भी है तू सूखा
उधर बारिश में
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
Sunday, 20 July 2025
"मैं" थोड़ा कम और "तुम" थोड़ा ज़्यादा - एक कविता
Sunday, 13 July 2025
हे जग सागर - एक गीत
Sunday, 6 July 2025
अभी अभी बही बयार सावनी सुहावनी
मन से कटुता दूर हटाएँ - एक गीत
मतभेदों को भूल-भालकर, आजादी का जश्न मनाएँ। राग द्वेष को त्याग यहाँ पर, मन से कटुता दूर हटाएँ ।। मन-मुटाव का कारण खोजें, मन की गलियों के उज...

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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
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जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...